राजस्थान का पारंपरिक स्वाद – चूरमा बाटी की कहानी और बनाने की विधि

चूरमा बाटी की रेसिपी और इतिहास

📜 चूरमा बाटी का इतिहास

चूरमा–बाटी राजस्थान और मध्य भारत की सबसे प्रसिद्ध पारंपरिक डिश है। इसका इतिहास राजपूत वीरों और ग्रामीण जीवन से जुड़ा हुआ है।

कहा जाता है कि जब राजपूत योद्धा युद्ध पर जाते थे, तो वे गेहूं के आटे से बनी मोटी बाटी (बिना तवे के सिर्फ अंगारों पर सेंकी हुई) साथ ले जाते थे।
बाटी को घी में डुबोकर खाना लंबे समय तक पेट भरा रखने वाला भोजन था और इसे बिना ज्यादा बर्तन–भांडे के भी बनाया जा सकता था।

चूरमा की उत्पत्ति भी एक रोचक कथा से जुड़ी है।
ग्रामीण महिलाएं जब बाटी को घी में डुबोती थीं, तो कुछ बाटी टूट जाती थी। इन टूटे हुए टुकड़ों को उन्होंने गुड़ और घी के साथ मिलाकर खाया, और वहीं से “चूरमा” जन्मा।
धीरे–धीरे यह राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात की शादियों व त्योहारों में मुख्य व्यंजन बन गया।

आज भी राजस्थान की थाली में दाल–बाटी–चूरमा को शाही व्यंजन माना जाता है।


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🍲 चूरमा बाटी की रेसिपी

🧾 सामग्री

बाटी के लिए –

गेहूं का आटा – 2 कप

सूजी – ½ कप

नमक – स्वादानुसार

अजवाइन – ½ चम्मच

घी – 4-5 बड़े चम्मच (मोयन के लिए)

पानी – जरूरत अनुसार


चूरमा के लिए –

बाटी – 5-6 (पकी हुई)

पिसी शक्कर या गुड़ – 1 कप

घी – 4-5 बड़े चम्मच

इलायची पाउडर – ½ चम्मच

ड्राई फ्रूट्स – कटे हुए



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👩‍🍳 बनाने की विधि

बाटी बनाने की विधि

1. आटा, सूजी, नमक, अजवाइन और घी डालकर अच्छी तरह मिक्स करें।


2. पानी डालकर सख्त आटा गूंध लें।


3. छोटे-छोटे गोल बाटी बनाएं।


4. इन्हें तंदूर, ओवन या अंगारों पर मध्यम आंच में गोल्डन ब्राउन होने तक सेंक लें।


5. तैयार बाटी को गर्म–गर्म घी में डुबोकर परोसें।



चूरमा बनाने की विधि

1. पकी हुई बाटी को तोड़कर मिक्सर या हाथ से दरदरा पीस लें।


2. इसमें पिसी शक्कर/गुड़, इलायची पाउडर और घी डालें।


3. ऊपर से ड्राई फ्रूट्स डालकर अच्छी तरह मिला लें।




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🍴 परोसने का तरीका

थाली में सबसे पहले दाल परोसी जाती है।

साथ में घी में डूबी हुई बाटी रखी जाती है।

मीठे में चूरमा परोसा जाता है।


यह संयोजन न सिर्फ स्वादिष्ट है बल्कि ऊर्जा और ताकत देने वाला भोजन भी है।


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🎉 खासियत

चूरमा–बाटी राजस्थान के त्योहारों जैसे होली, तीज, दिवाली और शादियों में जरूर बनती है।

यह व्यंजन आज राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे भारत और विदेशों में राजस्थानी खाने का प्रतीक बन चुका है।


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