वादों का धोखा: पुरानी और नई सरकारें
झुग्गियों के सपनों पर सियासत: नई और पुरानी सरकारों की नाकामी
दिल्ली की सड़कों पर एक नई क्रांति की गूंज सुनाई दे रही है। आम आदमी पार्टी (आप) ने झुग्गी-झोपड़ियों के ध्वस्तीकरण के खिलाफ जंतर-मंतर पर ‘घर रोजगार बचाओ आंदोलन’ की शुरुआत की है। यह 40 लाख गरीबों की उम्मीदों और हक की आवाज बनकर उभरा है। लेकिन इस आंदोलन ने नई सरकार की नाकामी तो उजागर की ही, पुरानी सरकारों के वादों के धोखे पर भी सवाल उठाए हैं। आइए, इस कहानी को एक अलग नजरिए से देखते हैं।
वादों का धोखा: पुरानी और नई सरकारें
आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने जंतर-मंतर से तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव से पहले ‘जहां झुग्गी, वहां मकान’ का वादा किया, लेकिन नई सरकार ने इसे ‘जहां झुग्गी, वहां मैदान’ में बदल दिया। केजरीवाल ने इसे गरीबों को उबलते तेल में झोंकने जैसा बताया और इन गारंटियों को नकली करार दिया। लेकिन सच यह भी है कि पुरानी सरकारें, चाहे केंद्र की हों या दिल्ली की, झुग्गीवासियों के लिए कुछ ठोस नहीं कर पाईं। दशकों से ये लोग नालों और रेलवे पटरियों के किनारे जिंदगी बसर करते रहे, जबकि वादे सिर्फ कागजों तक सीमित रहे।
चेतावनी और हताशा
केजरीवाल ने चेतावनी दी कि अगर भाजपा झुग्गियों को तोड़ती रही, तो यह सरकार पांच साल भी नहीं चलेगी। वरिष्ठ नेता गोपाल राय ने कहा कि बिना वैकल्पिक आवास के ध्वस्तीकरण पर गरीब प्रधानमंत्री आवास पर कब्जा कर लेंगे और बड़ा आंदोलन होगा। यह हताशा पुरानी सरकारों की नाकामी का भी परिणाम है, जिन्होंने झुग्गीवासियों को बसाने के लिए कोई स्थायी योजना नहीं बनाई, न ही कालकाजी जैसे कुछ प्रयासों को व्यापक स्तर पर लागू किया।
भाजपा का जवाब और दावे
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने आप नेताओं को नक्सली मानसिकता का ठप्पा लगाया और कहा कि उनके बयान सभ्य समाज के लिए अनुचित हैं। उन्होंने दावा किया कि नई सरकार झुग्गीवासियों को बेहतर जिंदगी दे रही है, जैसे कालकाजी और कठपुतली कॉलोनी में घर दिए गए। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह प्रयास पुरानी सरकारों की ढीली नीतियों का मुआवजा भर सकता है, जो झुग्गी समस्या को जड़ से खत्म करने में नाकाम रहीं?
एक नई उम्मीद या पुरानी निराशा?
यह आंदोलन नई सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है, लेकिन पुरानी सरकारों की उदासीनता भी सामने आती है। जंतर-मंतर पर उमड़ी भीड़ और केजरीवाल की अपील—40 लाख लोगों से झांसे से बचने की—दर्शाती है कि यह लड़ाई अब रुकने वाली नहीं। क्या यह आंदोलन दिल्ली की राजनीति में बदलाव लाएगा, या पुरानी और नई सरकारों की नाकामी का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा? यह सवाल हर उस शख्स के जेहन में है, जो इस संघर्ष को देख रहा है।
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